गोपालगंज से दिल्ली तक

लालू यादव,गोपालगंज की धूसर मिट्टी से सत्ता के गलियारों पर राज करने वाला इकलौता नाम जो सजायफ्ता होने के वावजूद भी बिहार की राजनीति में आज भी केंद्र बिंदु बना हुआ है। लालू लाल था , गरीबों का पोस्टर बॉय , पिछड़ों का मसीहा  वाकई में लालू कमाल था! बिहार के सड़कों को हेमामालिनी के गालों के समान सपाट बनाने की बात हो या फिर चुनावी रैली के दौरान हेलीकॉप्टर उतार कर चरवाहों को हवाई यात्रा करा राजनीति की एक नई बिधा की रचना करने की बात हो  ,लालू  बाकियों से अलग था। नब्बे की दशक में बिहार पर राज करने वाले लालू यादव को कोई कैसे भूल सकता है लालू के इन कारस्तानियां को?
लेकिन दोष सिर्फ किसी खास जाति विशेष का नहीं है दोष का हकदार खुद को ओछी जाति के कहने वाले लोग भी है , जिन्होंने नीचे जात वालो को इतना दबाया की वो क्रांति का सूत्रपात हुआ। और उसी क्रांति के जनक है तथाकथित चारा घोटाला के आरोपी सजाफ्ता लालू यादव। लालू के नाम की चमक को समय की धूल कतई धूमिल नहीं कर सकती , शायद यही वजह है कि आज सत्ता से एक दशक दूर रहने बाद भी लालू ज़िंदा है।
राजनीति के पक्के खिलाड़ी लालू जात पात के मैचों में शतक लगाने वाले लालू आज धर्म के मैचों में लोकसभा चुनाव में दहाई अंक तक का आंकड़ा नही छू पा रहे. 
बिहार में लालू के पतन से फर्क इतना आया है की मैचों का जरिया बदल गया है..पहले मैच जात पात के नाम पे हुआ करते थे अब मैच धर्म के नाम पर हो रहे है। राजनीति का परिपेक्ष दिन ब दिन बदल रहा है...जिस दिन राजनीति भारतीयता के नाम पर होगी उस दिन एक भारतीय होने का मतलब है समाज पाएंगे!

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